- द्वारा Santosh Singh
- Jun 21, 2023
बिहार में शिक्षक की नौकरी का एक नया अध्याय शुरू होने वाला है लेकिन इस नए अध्याय के शुरू होने से पहले ही पूरा ड्रामा उत्पन्न हो गया है। नियुक्ति पत्र वितरित करने के मामले पर शिक्षक यूनियन दो हिस्सों में बंट गया है। एक तरफ कुछ लोग इस फैसले को "सही कदम" बता रहें हैं तो वहीं दूसरी कुछ लोग इसे "आत्मघाती" कह रहें हैं। लेकिन सरकार बिलकुल स्पष्ट है- पात्रता परीक्षा या बीपीएससी उत्तीर्ण शिक्षकों को नियुक्ति पत्र देने का पूरा प्लान बना लिया गया है।
यूनियन में फूटा विवाद बम
नियुक्ति पत्र के मामले पर शिक्षकों का एक गुट मान रहा है की यह एक सकारात्मक कदम है जो शिक्षकों को एक बेहतर भविष्य देगा। दूसरी तरफ, एक गुट का कहना है कि यह कदम शिक्षकों की पुरानी सेवाओं को खत्म कर नए सेवा शुरू करने का एक चाल है। हालत यह है की कुछ शिक्षकों ने नियुक्ति पत्र लेने इंकार कर दिया है।
कुछ संघों का कहना है की सरकार नियुक्ति के नाम पर पुरानी सेवाओं को मिटाना चाहती है और एक नयी सेवा का अनुबंध चिह्न कराना चाहती है। यही वजह है की कुछ संघों ने शिक्षकों से अपील की है की वो इस नियुक्ति पत्र कार्यक्रम का बहिष्कार करें।
शिक्षक पत्र स्वीकार करने से क्यों झिझकते हैं ?
शिक्षकों का कहना है की सरकार ने नए नियम बनाकर उनकी पुरानी सेवाओं को खत्म करने की रणनीति बनायीं है। सरकार ने कोर्ट में लिखित रूप से जमा किया है की पात्रता परीक्षा या बीपीएससी पास शिक्षकों की जॉब एक "नयी जॉब" मानी जाएगी। इसका मतलब है की पुरानी सेवा और उसका निरंतरता काफी शिक्षकों के लिए खत्म हो जाएगी।
इस वजह से संघों ने कहा है की शिक्षक इस नियुक्ति पत्र कार्यक्रम रहें। यह फैसला उनका "भविष्य सुरक्षित" रखेगा संघों के अनुसार।
संघों का अगला कदम: मशाल रैली और विरोध प्रदर्शन
बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ ने 19 नवंबर को शाम 5 बजे मशाल जुलुस निकलने का फैसला किया है। ये प्रोटेस्ट सरकार की नीतियों के खिलाफ होगा। अगर सरकार ने ट्रांसफर-पोस्टिंग, सेवा निरंतरता और शिक्षक-अनुकूल नीतियों में बदलाव नहीं किया, तो 28 नवंबर को विधानमंडल के सामने धरना देने का भी प्लान है।
संघों का कहना है की शिक्षकों को 18 साल कि सेवा के बाद भी पदोन्नति नहीं मिला है और पात्रता पास शिक्षक से "वैकल्पिक स्थानांतरण" के लिए 10 उप विभाजनों का विकल्प मंगवाया गया है। इसके साथ ही महिला और दिव्यांग शिक्षकों को भी काफी परेशानियों का सामना करना पद रहा है।
"जो शिक्षक विकास चाहते हैं उन्हें रोका नहीं जाना चाहिए" - शैलेन्द्र शर्मा
शैलेन्द्र शर्मा उर्फ़ शैलू, अखिल भारतीय शैक्षिक संघ के राष्ट्रीय सचिव का कहना है की अगर कुछ शिक्षक नए नियुक्ति पत्र लेकर राज्य सरकार कर्मचारी की पद लेना चाहते हैं तो उनकी राह में रुकावट नहीं आणि चाहिए।
उनका कहना है, "जो शिक्षक पात्रता या बीपीएससी पास करते हैं, उनके आजीविका विकास का फैसला उनका अपना होना चाहिए। नयी जॉब के नियम के साथ पुराणी सेवा खत्म होती है, ये सबको पता है। अगर कोई नए अवसरों का अन्वेषण करना चाहता है तो संघ उसमें दखलअंदाजी क्यों करे ?"
शैलेन्द्र शर्मा कहते हैं की नए नियम शिक्षकों के लिए नए दरवाजे खोलेंगे। उनका मानना है की पुराने मानदंडों का संतुलन भी कायम होना चाहिए लेकिन अगर कुछ शिक्षक नए विकल्पों को स्वीकार करते हैं तो उन्हें आगे बढ़ने दिया जाये।
निष्कर्ष:
बिहार के शिक्षकों का भविष्य फिलहाल एक चौराहे पर है। एक तरफ सरकार अपनी नीतियों को लागू करना चाहती है तो दूसरी तरफ संघों और शिक्षकों के अलग-अलग दृष्टिकोण हैं। अब देखना यह है की सरकार और संघों के बीच का यह संघर्ष कैसे सुलझता है और क्या शिक्षक इस नए सिस्टम को अपनाने के लिए तैयार होते हैं या नहीं।