- द्वारा Santosh Singh
- Jun 21, 2023
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि बुलडोजर से की जा रही कार्रवाई असंवैधानिक है। कोर्ट का स्पष्ट कहना है कि किसी व्यक्ति का घर केवल इस आधार पर नहीं गिराया जा सकता कि उस पर कोई आरोप लगाया गया है। अदालत ने कहा कि किसी पर लगे आरोपों का फैसला करने का अधिकार केवल न्यायपालिका का है, न कि कार्यपालिका का।
बुलडोजर कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी व्यक्ति का घर तोड़ने का मतलब है कि उसके आश्रय को छीनना, जोकि उसके सपनों और उम्मीदों का आधार है। कोर्ट का कहना है कि कानून का शासन लोकतंत्र की बुनियाद है और इसे बनाए रखना सभी का कर्तव्य है। किसी व्यक्ति पर आरोप लगने मात्र से उसके घर को तोड़ देना कानून के शासन का उल्लंघन है। कोर्ट ने साफ किया कि किसी भी तरह की कार्रवाई से पहले कानूनी प्रक्रिया और नागरिक अधिकारों का पूरी तरह से पालन किया जाना चाहिए।
अदालत की गाइडलाइन्स: मनमानी पर रोक
कोर्ट ने कहा कि किसी संपत्ति का ध्वस्तीकरण करना है तो उसके लिए पहले पर्याप्त नोटिस और सुनवाई का अवसर दिया जाए। बुलडोजर की कार्रवाई बिना कारण बताओ नोटिस के नहीं होनी चाहिए। नोटिस पंजीकृत डाक से भेजा जाएगा और संरचना पर चिपकाया भी जाएगा। इसके बाद मकान मालिक को अपना पक्ष रखने के लिए 15 दिनों का समय दिया जाएगा।
अधिकारियों के लिए सख्त निर्देश
अदालत ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि विध्वंस प्रक्रिया की वीडियोग्राफी की जाए और वीडियो को संरक्षित किया जाए। यदि निर्देशों का पालन नहीं किया जाता है, तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ अवमानना और मुआवजे की कार्रवाई की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि सरकार का कार्य है कानून व्यवस्था बनाए रखना, लेकिन इसके नाम पर मनमानी को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट के 15 महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश:
ध्वस्तीकरण के आदेश के खिलाफ अपील का अवसर: यदि ध्वस्तीकरण का आदेश पारित किया जाता है, तो मालिक को अपील करने के लिए समय दिया जाएगा।
अवैध संरचनाओं को प्रभावित न करना: सड़क, नदी तट या अन्य सार्वजनिक स्थानों पर अवैध संरचनाओं को न हटाया जाए।
बिना नोटिस के ध्वस्तीकरण की कार्रवाई नहीं: किसी भी संरचना को बिना कारण बताओ नोटिस दिए ध्वस्त नहीं किया जाएगा।
पंजीकृत डाक से नोटिस भेजना: मालिक को पंजीकृत डाक द्वारा नोटिस भेजा जाएगा, और उसे संरचना के बाहर चिपकाया जाएगा।
15 दिन का समय मिलेगा: नोटिस तामील होने के बाद संरचना के मालिक को अपना पक्ष रखने के लिए 15 दिन का समय मिलेगा।
कलेक्टर और डीएम का रोल: कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट को ध्वस्तीकरण के प्रभारी अधिकारी नियुक्त किया जाएगा।
नोटिस में उल्लंघन की प्रकृति और सुनवाई की तारीख: नोटिस में उल्लंघन की प्रकृति, सुनवाई की तिथि और संबंधित विवरण दिया जाएगा।
सुनवाई के लिए डिजिटल पोर्टल का उपयोग: व्यक्तिगत सुनवाई के लिए एक डिजिटल पोर्टल उपलब्ध होगा, जहां नोटिस और आदेश का विवरण मिलेगा।
सुनवाई के बाद अंतिम आदेश: सुनवाई के बाद अंतिम आदेश पारित किया जाएगा, जिसमें यह स्पष्ट होगा कि क्या अवैध संरचना समझौता योग्य है।
विध्वंस का अंतिम कदम: केवल अंतिम उपाय के रूप में विध्वंस किया जाएगा, और इसके लिए सही कारण बताया जाएगा।
ऑनलाइन आदेश का प्रदर्शन: आदेश को डिजिटल पोर्टल पर प्रदर्शित किया जाएगा, ताकि सभी को इसकी जानकारी मिल सके।
विध्वंस के लिए 15 दिन का समय: मालिक को 15 दिन के भीतर अपनी संरचना को हटाने का अवसर दिया जाएगा।
अपीलीय निकाय का आदेश: अपीलीय निकाय द्वारा रोक न लगाए जाने पर ही विध्वंस की कार्रवाई की जाएगी।
विध्वंस की वीडियोग्राफी: विध्वंस की प्रक्रिया की वीडियोग्राफी की जाएगी, जिसे संरक्षित किया जाएगा।
मुआवजा और जवाबदेही: अधिकारियों को ध्वस्त संपत्ति का मुआवजा देने और उसे अपनी लागत पर वापस करने के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
अधिकारों की रक्षा पर जोर
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी. आर. गवई और के. वी. विश्वनाथन ने इस फैसले के माध्यम से साफ किया कि किसी भी आरोपी का घर तोड़ने का मतलब है कि उसके बुनियादी अधिकार का उल्लंघन करना। कोर्ट ने कहा कि लोकतांत्रिक ढांचे में नागरिकों के अधिकार और न्याय प्रक्रिया की निष्पक्षता सर्वोपरि है।