- द्वारा Santosh Singh
- Jun 21, 2023
अप्रैल 2016 से बिहार में लागु शराबबंदी अपने असली मकसद को अब तक पूरा नहीं कर पाई है। पटना हाई कोर्ट ने इस मामले में कड़क टिप्पणी करते हुए साफ़ कहा की शराबबंदी के चलते पुलिस, उत्पाद शुल्क अधिकारी और अब राज्य कर विभाग के साथ परिवहन विभाग के अधिकारी भी मोटी कमाई कर रहें हैं।
शराबबंदी से न सिर्फ शराब तस्करी में इज़ाफ़ा हुआ है बल्कि यह पुलिस और तस्करों के लिए एक कमाई का जरिया बन गयी है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जहाँ शराबबंदी की तारीफ करने का कोई मौका नहीं छोड़ते वहीँ हाई कोर्ट ने इस व्यवस्था की बुराइयां गिनाते हुए कहा की यह कानून अब केवल अफसरों को मालामाल करने का माध्यम बन गया है।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी
जस्टिस पुर्णेन्दु सिंह ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान कहा, "शराबबंदी ने न सिर्फ शराब और अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं के गलत व्यापर को बढ़ावा दिया है, बल्कि तस्करों ने नए-नए तरीके भी अपना लिए हैं जो कानून लागु करने वाली एजेंसियों को धोका देते हैं और उन्हें कमज़ोर बनाते हैं।"
कानून की असलियत
कोर्ट का कहना है की शराबबंदी कानून का असर उन गरीब लोगों पर ज़्यादा हुआ है जो अपनी रोज़ी-रोटी के लिए दर्द झेल रहें हैं। कोर्ट के मुताबिक, तस्करी करने वाले बड़े सरगना के मुकाबले छोटी मोटी गलती करने वाले लोगों के खिलाफ ज़्यादा केस दर्ज हुए हैं। ज़्यादातर इन लोगों में दरदरी मजदूर और अपने परिवार के एकमात्र कमाने वाले लोग शामिल हैं।
पुलिस और शराबबंदी
कोर्ट के अवलोकन के अनुसार, पुलिस और उत्पाद अधिकारी के साथ अब राज्य कर और परिवहन विभाग के अधिकारी भी शराबबंदी के चलते मोटी कमाई का फायदा उठा रहें हैं।
यह पूरा मामला तब सामने आया जब बाईपास पुलिस स्टेशन के एसएचओ मुकेश कुमार पासवान ने एक रिट याचिका दायर की। उनपर आरोप था की उनके पास आबकारी विभाग के अधिकारीयों ने रेड के दौरान विदेशी शराब पकड़ी थी, जिसके बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया था। 2020 में राज्य सरकार के आदेश के बाद उनका पद भी घटा दिया गया।
पटना हाई कोर्ट ने इस मामले में स्पष्ट कहा की शराबबंदी कानून तस्करों के लिए एक सुविधा बन चूका है और ये व्यवस्था गरीब लोगों पर एक बोझ बन गयी है।