- द्वारा Santosh Singh
- Jun 21, 2023
बिहार से लेकर दिल्ली तक, इस सवाल की चर्चा जोरों पर है – क्या जाट समुदाय एक बार फिर बीजेपी के लिए खड़ी करेगा खाट? यह सवाल इन दिनों भाजपा नेताओं के बीच गर्म बहस का कारण बना हुआ है। दरअसल, किसानों के मुद्दे पर मोदी सरकार के कृषि मंत्री को घेरते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक के बाद एक गंभीर सवाल उठाए, जिससे बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं।
"बावन बुद्धि बाणिया, छप्पन बुद्धि जाट" जाट समुदाय को लेकर यह कहावत बहुत प्रसिद्ध है, जिसमें कहा गया है कि जाटों के पास 56 प्रकार की बुद्धि होती है। आज की सियासत में यह कहावत फिर से सच साबित होती नजर आ रही है, जब जाट समुदाय भाजपा के लिए नई मुश्किलें खड़ी कर रहा है। किसान आंदोलन के दौरान जिस तरह से जाटों ने सरकार की खाट खड़ी कर दी थी, अब वही मुद्दा फिर से भाजपा के गले की फांस बन चुका है।
इस बार खुद उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने किसान आंदोलन के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को घेरा है। कृषि मंत्री के खिलाफ तीखे सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा, "किसान संकट में हैं, वे आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन क्या सरकार से बात क्यों नहीं हो रही?" उनका यह सवाल उस समय उठता है जब कई भाजपा नेता किसान आंदोलन को केवल राजनीति से प्रेरित बता चुके थे। धनखड़ ने कृषि मंत्री को भी कटघरे में खड़ा करते हुए कहा, "कृषि मंत्री जी, आप क्या कर रहे हैं? किसानों की समस्या का समाधान क्यों नहीं हुआ?"
इसके अलावा, भाजपा और मोदी सरकार के लिए मुश्किलें और भी बढ़ सकती हैं, क्योंकि जाट समुदाय से जुड़े और भाजपा के पुराने साथी सत्यपाल मलिक भी किसानों के पक्ष में खड़े हो चुके हैं। मलिक, जो पहले राज्यपाल रहे हैं, मोदी सरकार पर किसानों के मुद्दे पर गंभीर आरोप लगा चुके हैं। अब धनखड़ का यह बयान भाजपा के लिए एक नई चिंता का सबब बन गया है।
सच्चाई यह है कि जाटों का इतिहास किसानों के मुद्दे पर भाजपा और मोदी सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी करने का रहा है। पंजाब और यूपी जैसे जाट बहुल राज्यों में भाजपा को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा है। किसान आंदोलन को लेकर बीजेपी को आलोचना का सामना करना पड़ा, और अब जाट नेताओं का विरोध एक बार फिर सियासी हलकों में हलचल मचा रहा है।
इस सबके बीच सवाल उठता है – क्या जाट समुदाय एक बार फिर बीजेपी के लिए मुसीबत खड़ी करेगा? क्या सरकार किसानों के मुद्दे को गंभीरता से लेगी, या फिर यह राजनीतिक तकरार और बढ़ेगी? ये सवाल भाजपा के लिए एक गंभीर चुनौती बन सकते हैं, और आने वाले चुनावों में इसका असर साफ दिख सकता है।