- द्वारा Santosh Singh
- Jun 21, 2023
बिहार विधानसभा और विधान परिषद का शीतकालीन सत्र 25 नवंबर से 29 नवंबर तक चलेगा, लेकिन यह सिर्फ चार दिनों का साधारण सत्र नहीं होगा। यह सत्र इसलिए भी बेहद खास है क्योंकि 23 नवंबर को झारखंड विधानसभा चुनाव और बिहार उपचुनाव के नतीजे घोषित होंगे, जिनके सियासी समीकरणों पर असर डालने की पूरी संभावना है।
सत्र की शुरुआत और संभावित बिल
सत्र की शुरुआत राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर के अभिभाषण से होगी, जो संविधान के अनुच्छेद 174 (बी) के तहत सुबह 11 बजे निर्धारित है। इस दौरान, कई महत्वपूर्ण बिल पेश किए जाने और पारित होने की संभावना है। लेकिन असली गर्मी सदन के भीतर होने वाली बहसों में देखने को मिलेगी, जहां सरकार और विपक्ष आमने-सामने होंगे।
शराबबंदी नीति पर विपक्ष का हमला
विपक्ष, खासकर राजद और उसके सहयोगी, हाल ही में हुई शराब त्रासदियों को लेकर सरकार को घेरने की पूरी तैयारी में हैं। सीवान, सारण और गोपालगंज जैसे जिलों में जहरीली शराब से हुई मौतों ने शराबबंदी कानून की प्रभावशीलता पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। तेजस्वी यादव और अन्य विपक्षी नेता इसे सरकार की एक "असफल नीति" बताते हुए राज्य की कानून व्यवस्था पर निशाना साध सकते हैं।
स्मार्ट मीटर विवाद और जनता की नाराज़गी
शराबबंदी के अलावा, स्मार्ट मीटर की स्थापना भी विपक्ष के एजेंडे में है। स्मार्ट मीटर से जुड़े बिलिंग विवाद और कथित ऊंची लागत ने जनता के बीच रोष पैदा किया है। विपक्ष इसे जनता पर "अनावश्यक आर्थिक बोझ" के रूप में पेश करते हुए एनडीए सरकार को आड़े हाथ ले सकता है।
भूमि सर्वेक्षण: सदन का एक और हॉट टॉपिक
भूमि सर्वेक्षण का मुद्दा बिहार की राजनीति में पहले से ही चर्चा का केंद्र बना हुआ है। इसे लेकर जनता और नेताओं की मिली-जुली प्रतिक्रियाएं हैं। शीतकालीन सत्र के दौरान इस मुद्दे पर जमकर हंगामा होने की संभावना है।
सत्र का सियासी महत्व
23 नवंबर को आने वाले चुनावी नतीजों के बाद यह सत्र एक ऐसी राजनीतिक रणभूमि में बदल सकता है, जहां हर दल अपनी रणनीति को धार देने की कोशिश करेगा। खासतौर पर एनडीए और महागठबंधन के बीच तनातनी इस सत्र को और दिलचस्प बना देगी।
क्या देखने को मिलेगा इस बार?
सत्र के दौरान:
- शराबबंदी नीति पर तीखी बहस।
- स्मार्ट मीटर और जनता के मुद्दों पर सरकार से जवाबदेही।
- भूमि सर्वेक्षण को लेकर विपक्ष का तीखा हमला।
- सियासी दलों की नई रणनीतियां और गठबंधन की मजबूती।
निष्कर्ष:
चार दिनों का यह शीतकालीन सत्र भले ही छोटा है, लेकिन इसकी सियासी गूंज लंबे समय तक सुनाई देगी। जहां सरकार अपने फैसलों का बचाव करेगी, वहीं विपक्ष अपनी राजनीतिक धार तेज करने का कोई मौका नहीं छोड़ेगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि बिहार की जनता के मुद्दे इस सत्र में कितनी अहमियत पाते हैं और सियासी समीकरण किस दिशा में जाते हैं।