- द्वारा Santosh Singh
- Jun 21, 2023
बिहार की राजनीति में शिक्षकों की सेवा निरंतरता का मुद्दा फिर सुर्खियों में है। विधान परिषद में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच इस पर तीखी बहस देखने को मिली। सक्षमता परीक्षा पास करने वाले नियोजित शिक्षकों की पूर्व सेवा अवधि को जोड़ने और उनकी सीनियरिटी को बहाल रखने की मांग ने जोर पकड़ लिया है।
सवाल उठे, जवाब मांगे गए
सत्ता पक्ष के एमएलसी नवल किशोर यादव ने सक्षमता परीक्षा पास शिक्षकों की सेवा निरंतरता पर सवाल खड़े करते हुए सरकार को कटघरे में खड़ा किया। उन्होंने सरकार से सीधा सवाल किया, "आपने हाल ही में बीपीएससी परीक्षा पास कर शिक्षक बने नए अभ्यर्थियों को सीनियर बना दिया, जबकि 10-18 सालों से शिक्षण कार्य कर रहे नियोजित शिक्षकों को जूनियर बना दिया। यह कैसे न्यायसंगत है?"
यादव ने कहा कि शिक्षकों के वर्षों के अनुभव को नकारना उनके साथ अन्याय है। उन्होंने तर्क दिया कि दुनिया के किसी भी कानून में ऐसा प्रावधान नहीं है, जो पूर्व अनुभव को पूरी तरह दरकिनार कर दे।
समर्थन में उठीं आवाजें
एमएलसी डॉ. संजीव कुमार सिंह ने भी इस मुद्दे पर यादव का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि शिक्षकों की सेवा निरंतरता को समाप्त करना न केवल गलत है, बल्कि यह जानबूझकर असंतोष पैदा करने जैसा है। सिंह ने सवाल किया कि जब अन्य स्थानों पर नियुक्तियों में अनुभव को जोड़ा जा सकता है, तो बिहार में नियोजित शिक्षकों के साथ भेदभाव क्यों?
शिक्षा मंत्री का रुख
विवाद के बीच शिक्षा मंत्री सुनील कुमार ने सरकार का पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार हमेशा शिक्षकों के हित में काम करती है। सक्षमता परीक्षा पास शिक्षकों की संवैधानिक स्थिति को समझना होगा, क्योंकि स्थानीय निकाय शिक्षकों के नियम भारत के संविधान के अनुच्छेद 247 (6) के तहत बनाए गए हैं।
उन्होंने भरोसा दिलाया कि सदस्यों द्वारा उठाए गए मुद्दे पर सरकार विचार करेगी। साथ ही, शिक्षकों की नियुक्तियों और सेवा नियमों का विवरण पेश करते हुए उन्होंने कहा कि शिक्षा विभाग शिक्षकों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है।
क्या रहेगा आगे का रुख?
हालांकि, शिक्षा मंत्री के जवाब से असंतोष प्रकट करते हुए एमएलसी यादव ने कहा कि शिक्षा मंत्री विषयांतर कर रहे हैं। उन्होंने सरकार को याद दिलाया कि पहले यह कहा गया था कि सक्षमता परीक्षा पास करने के बाद शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा दिया जाएगा, लेकिन सेवा निरंतरता समाप्त करने की बात कभी नहीं कही गई थी।
यादव ने सरकार से स्पष्ट किया कि अगर शिक्षकों की सेवा निरंतरता समाप्त की जाती है, तो यह उनके अधिकारों के साथ अन्याय होगा।
क्या शिक्षकों को मिलेगा न्याय?
शिक्षा मंत्री ने सदस्यों के सवालों पर विचार करने की बात कही है, लेकिन शिक्षकों के हितों से जुड़े इस बड़े मुद्दे पर सरकार का अंतिम फैसला क्या होगा, यह देखना बाकी है। शिक्षकों के अनुभव और योगदान का सम्मान किया जाएगा या यह मामला राजनीतिक बहसों तक सीमित रहेगा? यह सवाल बिहार की राजनीति और शिक्षण व्यवस्था दोनों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।