- द्वारा Santosh Singh
- Jun 21, 2023
पटना में लोक जनशक्ति पार्टी के नाम पर जो सरकारी बांग्ला था, उस पर पशुपति कुमार पारस का कब्ज़ा था। लेकिन अब वो भी चला गया। पारस ने मंडे को अपना पटना वाला बांग्ला खली कर दिया और अब सवाल ये है की उनकी पार्टी कहाँ से ऑपरेट करेगी। अब न उनके पास मिनिस्टर की कुर्सी है, न पटना में कोई ऑफिस और न ही दिल्ली में कोई ख़ास ठिकाना। कहीं न कहीं, उनका पूरा पोलिटिकल बेस सिर्फ कागज़ों तक सीमित रह गया है।
'बंगला बचाने की कोशिश, मगर बेअसर'
पारस ने अपना ये बांग्ला बचाने के लिए हर मुमकिन कोशिश की। दिल्ली जाके अमित शाह से भी मदद की गुहार लगायी और पटना हाई कोर्ट में भी रिट दाखिल की लेकिन उनकी यह कोशिश रंग लायी। न तो अमित शाह ने इन्हे कोई एहमियत दिया और न ही कोर्ट में उनकी याचिका सफल हुई। बिहार गवर्नमेंट ने भी साफ़ तौर पर कह दिया के अब उन्हें पटना में ऑफिस का ये सरकारी ठिकाना नहीं मिलेगा।
'2005 में हुआ था बंगला आवंटित'
यह वही बांग्ला है जो 2005 में बिहार सरकार ने लोजपा को आवंटित किया गया था। यह बांग्ला पटना एयरपोर्ट के पास, व्हीलर रोड पर एक प्रमुख स्थान पर था। हर दो साल में इसका आवंटन नवीनीकरण होता रहता था, लेकिन पिछले कुछ सालों में लोजपा के पोलिटिकल कद में गिरावट आयी है। लोकसभा चुनाव में उन्होंने किसी भी सीट पर लड़ाई नहीं किया और अब न कोई एम.एल.ए बचा है और ना ही एमपी। इसी वजह से उनकी पार्टी की राजनीतिक पहचान खत्म हो गयी।
'13 जून को आवंटन रद्द'
आखिरकार, 13 जून 2024 को बिहार सरकार ने इस बंगले का आवंटन आधिकारिक तौर पर रद्द कर दिया और भवन निर्माण विभाग ने पारस को नोटिस भी भेज दिया था। उन्होंने कहा था के जल्दी से जल्दी बंगला खाली करें। मगर पारस ने अपनी तरफ से पूरी लड़ाई की, लेकिन एन्ड में उन्हें ये बांग्ला छोड़ना ही पड़ा।
आज पारस के पास न पटना में कोई कार्यालय है, न ही कोई औपचारिक सेटअप और उनका राजनीतिक उपस्थिति अब सिर्फ कागज़ों में सिमट के रह गया है। आने वाले दिनों में देखना होगा की ये बदलतीं परिस्थितियाँ पारस और उनकी पार्टी के राजनीतिक भविष्य को किस तरह से आकर देते हैं।