- द्वारा Santosh Singh
- Jun 21, 2023
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में बनी पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को पलट दिया है, जिसमें इस अधिनियम को असंवैधानिक घोषित किया गया था। यह फैसला मदरसा शिक्षा के क्षेत्र में एक नई दिशा देने वाला साबित हो सकता है, खासतौर पर उन 17 लाख छात्रों और उनके शिक्षकों के लिए जो इन संस्थानों से जुड़े हुए हैं।
क्या था इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला?
इस साल मार्च में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा था कि उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 संविधान के धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से सभी मदरसों के छात्रों को नियमित स्कूलों में शिफ्ट करने का निर्देश दिया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश पर अप्रैल में रोक लगा दी थी और अब इस अधिनियम की वैधता को पूरी तरह से बरकरार रखा है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्यों है महत्वपूर्ण?
सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यह कानून धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ नहीं है। CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने बयान में कहा कि एक कानून को तब तक असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता जब तक कि राज्य के पास इसे बनाने की विधायी शक्ति नहीं हो। मदरसा कानून की वैधता को बरकरार रखते हुए कोर्ट ने साफ किया कि यह कानून मदरसा शिक्षा में सुधार और मानकीकरण के उद्देश्य से बनाया गया है।
फैसले का क्या प्रभाव पड़ेगा?
यह फैसला मदरसों के छात्रों और शिक्षकों के लिए एक बड़ी राहत के तौर पर आया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि राज्य का यह कदम छात्रों को बेहतर शिक्षा देने और मदरसों में सुधार लाने के लिए है, न कि उन्हें बंद करने के लिए। इससे अब उत्तर प्रदेश में मदरसों की शिक्षा को स्थिरता मिलेगी और छात्रों को अपने संस्थानों में ही पढ़ाई जारी रखने का मौका मिलेगा।
क्या कह रहे हैं मुस्लिम संगठनों के नेता?
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद मुस्लिम समुदाय में खुशी की लहर है। लखनऊ ईदगाह इमाम और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा, "मदरसे सिर्फ इस्लामी शिक्षा नहीं बल्कि आधुनिक शिक्षा भी प्रदान करते हैं। यूपी सरकार द्वारा बनाया गया अधिनियम असंवैधानिक नहीं हो सकता।" इस फैसले ने समुदाय में एक सकारात्मक संदेश दिया है कि मदरसों की शिक्षा को राष्ट्रीय और समाज की मुख्यधारा में स्थान दिया जा रहा है।
क्या है मामला और क्यों था विवाद?
उत्तर प्रदेश मदरसा कानून का उद्देश्य मदरसों में पढ़ाई के स्तर को सुधारना है, लेकिन हाईकोर्ट ने इसे संविधान के धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ माना था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने इस भ्रम को दूर किया है और इसे राज्य के लिए सकारात्मक दिशा में उठाया गया कदम बताया है।
इस फैसले से क्या उम्मीदें हैं?
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से मदरसा शिक्षा में बदलाव और सुधार के नए दरवाजे खुल सकते हैं। सरकार अब मदरसों में आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए प्रयास कर सकती है, जिससे इन संस्थानों में पढ़ने वाले छात्र भी समाज के अन्य क्षेत्रों में समान अवसर प्राप्त कर सकें।
कुल मिलाकर, सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न केवल संवैधानिक व्यवस्था की रक्षा करता है बल्कि देश के मदरसा शिक्षा प्रणाली को भी प्रोत्साहित करता है, जिससे छात्रों का भविष्य उज्जवल हो सके।