- द्वारा Santosh Singh
- Jun 21, 2023
बिहार की सियासत में जातीय समीकरण का खेल हमेशा खास रहा है। इस बार पटना के मिलर स्कूल के मैदान में 'चंद्रवंशी स्वाभिमान रैली' से राजनीतिक हलकों में नई हलचल मचने वाली है। एनडीए ने 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले अति पिछड़ा वोट बैंक को साधने की कोशिश तेज कर दी है।
जातीय राजनीति का नया अध्याय
बिहार की राजनीति में जातीय गोलबंदी का इतिहास पुराना है। लालू प्रसाद यादव ने यादव और मुस्लिम समीकरण के दम पर 15 साल तक सत्ता संभाली, वहीं नीतीश कुमार ने अति पिछड़ा वर्ग और सवर्णों को जोड़कर अपनी सियासी गाड़ी को रफ्तार दी। अब चुनावी मैदान में नया दांव खेलने की तैयारी है।
शनिवार, 7 दिसंबर को पटना के मिलर स्कूल मैदान में आयोजित इस रैली में चंद्रवंशी समाज के साथ-साथ अति पिछड़ों को जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। प्रमोद चंद्रवंशी, जो इस आयोजन के सूत्रधार हैं, का कहना है कि यह रैली समाज को मुख्यधारा में लाने की एक अहम पहल है।
अति पिछड़ा' वोट बैंक पर निशाना
प्रमोद चंद्रवंशी ने आरोप लगाया कि लालू यादव के राज में चंद्रवंशी और अति पिछड़ा समाज हाशिए पर चला गया। हालांकि, 2005 के बाद नीतीश कुमार ने इस वर्ग का सम्मान वापस दिलाया। उनका दावा है कि यह रैली न केवल आगामी विधानसभा चुनाव बल्कि भविष्य की सियासत में भी अति पिछड़ों की ताकत को दिखाने के लिए मील का पत्थर साबित होगी।
पोस्टर और बैनरों में नेताओं की भीड़
रैली को लेकर पटना में बड़े पैमाने पर प्रचार हो रहा है। पोस्टर और बैनरों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा और बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं की तस्वीरें नजर आ रही हैं। हालांकि किसी पार्टी का नाम पोस्टरों पर नहीं है, लेकिन संदेश साफ है—एनडीए ने जातीय गोलबंदी की शुरुआत कर दी है।
धान की कटाई और शादी-विवाह के बावजूद भीड़ का दावा
यह समय खेती-किसानी और शादी-विवाह का है, इसके बावजूद आयोजकों को उम्मीद है कि हजारों की संख्या में चंद्रवंशी समाज के लोग इस रैली में शामिल होंगे। प्रमोद चंद्रवंशी का कहना है कि यह रैली अति पिछड़ा समाज को एक नई पहचान देने की शुरुआत है।
सियासी महाजुटान पर सबकी निगाहें
अब सवाल यह है कि शनिवार को इस मंच पर कौन-कौन से बड़े नेता पहुंचेंगे और यह रैली एनडीए के जातीय समीकरण को कितना मजबूत करेगी। राजनीति के इस नए अध्याय पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं।
क्या बिहार की सियासत का यह 'स्वाभिमान दांव' एनडीए के लिए गेम-चेंजर साबित होगा? आने वाले समय में तस्वीर साफ होगी।