- द्वारा Santosh Singh
- Jun 21, 2023
बिहार के बेलागंज, तरारी, इमामगंज, और रामगढ़ में हो रहे उपचुनाव न सिर्फ इन सीटों का भविष्य तय करेंगे बल्कि 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भी संकेत देंगे। हर उपचुनाव की तरह यहां भी हार-जीत पर सत्तारूढ़ दल और विपक्ष की व्याख्या देखने को मिलेगी। सत्ता पक्ष की हार पर विपक्ष इसे सरकार की विदाई का संकेत बताएगा, तो जीत होने पर सत्ताधारी दल यही कहेगा, "हमारे स्वास्थ्य पर कोई असर नहीं।"
पिछले लोकसभा चुनाव का असर और वोट बैंक की खींचातानी
पिछले चुनाव में एनडीए को यहां तीन लोकसभा सीटों पर निराशा मिली थी, जिसमें तरारी, रामगढ़, और इमामगंज में NDA को शिकस्त झेलनी पड़ी थी। इन तीन सीटों पर महागठबंधन ने अच्छी बढ़त बनाई थी। एनडीए की इस हार की वजह कुछ परंपरागत वोटर माने गए थे - खासतौर पर कुशवाहा और वैश्य समाज, जो महागठबंधन की ओर खिसक गए थे। इस बार के उपचुनाव में एनडीए ने इन वर्गों पर विशेष ध्यान देते हुए अपने बिदके हुए वोटर्स को मनाने की कोशिश की है।
परिणाम ये बताएगा कि क्या एनडीए इन वोटर्स को वापस अपनी ओर खींचने में कामयाब हुआ या कुशवाहा और वैश्य मतदाता अब भी महागठबंधन के साथ खड़े हैं। ये देखना दिलचस्प होगा कि इनका जुड़ाव केवल लोकसभा चुनाव तक ही सीमित था या यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा।
हर सीट पर परिवारवाद का बोलबाला
चारों सीटों पर चुनावी मैदान में परिवारवाद की भी तगड़ी झलक देखने को मिल रही है। बेलागंज में राजद से सुरेंद्र यादव के पुत्र विश्वनाथ कुमार सिंह, इमामगंज में जीतनराम मांझी की बहू दीपा मांझी, रामगढ़ में राजद प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के पुत्र अजित सिंह, और तरारी में भाजपा से पूर्व विधायक सुनील पांडेय के बेटे विशाल प्रशांत मैदान में हैं। वहीं, बेलागंज की जदयू उम्मीदवार मनोरमा देवी भी इसी परंपरा का हिस्सा हैं।
प्रशांत किशोर की अग्निपरीक्षा
इस उपचुनाव में चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भी मैदान में है। यह उनके लिए भी अग्निपरीक्षा होगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि दूसरे दलों की जीत की रणनीति बनाने वाले प्रशांत किशोर अपने लिए कितनी सफलता हासिल कर पाते हैं।