- द्वारा Santosh Singh
- Jun 21, 2023
तिरहुत स्नातक निर्वाचन क्षेत्र का उपचुनाव सियासत की नई पटकथा लिखने को तैयार है। 5 दिसंबर को होने वाले इस चुनाव में 18 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिनकी किस्मत का फैसला 1.56 लाख मतदाता करेंगे। जेडीयू के दिग्गज नेता देवेश चंद्र ठाकुर के लोकसभा चुनाव जीतने से खाली हुई इस सीट पर उपचुनाव हो रहा है, और जेडीयू हर हाल में इस सीट पर अपनी पकड़ बनाए रखना चाहती है।
जेडीयू ने एनडीए के समर्थन से अभिषेक झा को अपना उम्मीदवार बनाया है। वहीं, आरजेडी से गोपी किशन और प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज से डॉ. विनायक गौतम मुख्य मुकाबले में हैं। चुनावी फिजा में दिलचस्प मोड़ तब आया जब चिराग पासवान की पार्टी लोजपा (रामविलास) से बागी होकर राकेश रौशन ने भी ताल ठोक दी।
तीन दावेदार और रौशन का खेल बिगाड़ने का दावा
जमीनी स्तर पर मुकाबला त्रिकोणीय दिख रहा है। अभिषेक झा, गोपी किशन, और डॉ. विनायक गौतम के बीच सीधा संघर्ष है। लेकिन बागी उम्मीदवार राकेश रौशन के मैदान में आने से समीकरण बिगड़ने की संभावना है। राजपूत जाति से आने वाले रौशन इलाके में अपनी मजबूत पकड़ और जातिगत समीकरणों के दम पर चुनावी गणित को पलटने का दावा कर रहे हैं।
अभिषेक झा पर बाहरी होने का आरोप
एनडीए समर्थित उम्मीदवार अभिषेक झा को बाहरी बताया जा रहा है। हालांकि, जेडीयू ने अपने पूरे तंत्र को उनके प्रचार में झोंक दिया है। पिछले दो दशकों से जेडीयू का इस सीट पर कब्जा है, जो पार्टी के लिए मनोबल बढ़ाने वाला है। लेकिन विरोधी इस बार पूरी ताकत से चुनौती दे रहे हैं।
डॉ. विनायक गौतम: पिता और नाना की विरासत का सहारा
जन सुराज पार्टी के डॉ. विनायक गौतम अपने पिता रामकुमार सिंह और नाना रघुनाथ पांडे की राजनीतिक विरासत को लेकर चुनावी मैदान में हैं। पेशे से डॉक्टर और मुजफ्फरपुर के रहने वाले विनायक अपनी पारिवारिक प्रतिष्ठा और व्यक्तिगत छवि के बल पर जोरदार दावेदारी कर रहे हैं। उनका दावा है कि वे अपने पिता की तरह विधान परिषद का हिस्सा बनकर क्षेत्र की सेवा करेंगे।
गोपी किशन की मजबूत तैयारी
आरजेडी के गोपी किशन को इस बार जीत की उम्मीद है। पिछले चुनाव में महज 2500 वोटों से मिली हार ने पार्टी को सतर्क कर दिया है। इस बार आरजेडी ने अपने प्रचार और रणनीति में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
क्या होगा नतीजा?
तिरहुत स्नातक उपचुनाव केवल जीत और हार का नहीं, बल्कि सियासी प्रतिष्ठा का सवाल है। एनडीए अपनी पकड़ बनाए रखना चाहती है, जबकि आरजेडी और जन सुराज सीट हथियाने की पूरी तैयारी में हैं। राकेश रौशन की बगावत ने चुनावी समीकरण को और रोमांचक बना दिया है।
अब देखना होगा कि 1.56 लाख मतदाता किसे अपना नेता चुनते हैं और इस सियासी जंग का ताज किसके सिर सजता है।